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Wednesday 5 October 2016

माँ कात्यायनी

Maa Katyayani

माँ भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम माँ कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर उनकी पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण करके दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप बहुत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। कात्यायनी माँ की चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार सुशोभित है। कात्यायनी माँ का वाहन सिंह है। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके इसी स्वरुप की पूजा की जाती है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और साधना से मनुष्यों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति हो जाती है।
नवरात्र के पावन समय में छठे दिन धर्म,कर्म, मोक्ष को प्रदान करने वाली माँ कात्यायनी की पूजा वंदना का विधान है। साधक , आराधक जन इस दिन मां का स्मरण करते हुए अपने मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करते हैं। योग साधना में आज्ञा चक्र का बहुत महत्व होता है। मां की षष्ठम् शक्ति कात्यायनी नाम का रहस्य है। एक कत नाम के ऋषि हुआ करते थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए इन्हीं कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए उनकी तपस्या के फलस्वरूप उनकी इच्छा के अनुसार भगवती ने उनके यहां एक पुत्री के रूप में जन्म लिया।
भगवती कात्यायनी ने शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और फिर महिषासुर का वध किया था। जिसके कारण छठी देवी का नाम कात्यायनी पडा। माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत विशाल एवं दिव्य है।
नवरात्र का छठा दिन भगवती कात्यायनी की उपसना का दिन है। श्रद्धालु व साधक अनेक प्रकार से भगवती की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत व साधना करते हैं।जगदम्बा भगवती के साधक पूरे एवं श्रद्धा भाव से उनके कात्यायनी स्वरूप की आराधना कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।
साधना विधान –
सर्वप्रथम कात्यायनी माँ की मूर्ति अथवा तस्वीर को लकडी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। तदुपरांत चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। दीपक जलाये रखें। तदुपरांत हाथ में लाल फूल लेकर मां का ध्यान करें।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥
स्तोत्र
कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।
विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥
कवच
कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

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